ये वो लोग हैं जो बाजार खरीदते हैं।
ना कभी हारते हैं ना कभी जीतते हैं ।
हर शाम सौदा होता है इमानदारी का,
हर शाम जमीर यहां पर बिकते हैं ।
कुछ एक हैं इस बाजार में अब भी,
जो अपना हिसाब फरेबी लिखते हैं।
लोग बड़े ही शातिर है लेन-देन में,
काली नीयत उजला लिबास रखते हैं।
होशियार रहना देश के इन गद्दारों से,
नेता जो कुछ कुछ शरीफ दिखते हैं।
ये वो लोग हैं जो बाजार खरीदते हैं।
ना कभी हारते हैं ना कभी जीतते हैं ।
ना कभी हारते हैं ना कभी जीतते हैं ।
हर शाम सौदा होता है इमानदारी का,
हर शाम जमीर यहां पर बिकते हैं ।
कुछ एक हैं इस बाजार में अब भी,
जो अपना हिसाब फरेबी लिखते हैं।
लोग बड़े ही शातिर है लेन-देन में,
काली नीयत उजला लिबास रखते हैं।
होशियार रहना देश के इन गद्दारों से,
नेता जो कुछ कुछ शरीफ दिखते हैं।
ये वो लोग हैं जो बाजार खरीदते हैं।
ना कभी हारते हैं ना कभी जीतते हैं ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (31-10-2018) को "मंदिर तो बना लें पर दंगों से डर लगता है" (चर्चा अंक-3141) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
धन्यवाद आपका
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंRation Card
जवाब देंहटाएंआपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।