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कैसे-कैसे लोग साहिबे मसनद हो गए

कैसे -कैसे लोग साहिबे मसनद हो गए ,
मजहब के सौदाई सब दहशत गर्द हो गए।  

सियासती दंगों की फसल जब-जब लहराई ,  
जितने भी हिजड़े थे शहर में, सब मर्द हो गए।  

बिक जाती हैं बेटियां रोटियों खातिर,
छाले सब रूह के बेहद बेदर्द हो गए।  

कौन पूछता है सबब गरीबों का जहां में ,
बेटी जवान क्या हुयी, सब हमदर्द हो गए।  

राहे-गुजर के पत्थर हुआ करते थे कभी,
वक्त क्या बदला, सबके सब गुम्बद हो गए।  

यहां अवाम तरसती रही निवालों के लिए,
हालाते मुल्क पे वो बेशर्म बेहद हो गए ।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-10-2018) को "सब के सब चुप हैं" (चर्चा अंक-3126) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. Ration Card
    आपने बहुत अच्छा लेखा लिखा है, जिसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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