उनके दीदार -ए- निस्बत में,
कब से राहें बिछाए हुए हैं।
इश्क का असरार तो देखिये ,
उजलत में सब भुलाये हुए हैं।
है अभी गुफ्तगू की गुंजाइश,
हम भी उम्मीद लगाए हुए हैं।
तीरगी फैली है जहाँ में ,
तब से चराग जलाए हुए हैं।
चैन -ओ-अमन का गुलिस्तां वो,
सहरा में भी सजाए हुए हैं।
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