सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

कुछ तो करना होगा !


दिन भर
पूरे शहर की 
गंदगी और 
कचरा साफ़ करने के बाद;
बमुश्किल कमा पाता है
दो सौ रुपये!
इन रुपयों में
चार लोगो का पेट भरना 
और झुग्गी का 
किराया देना 
कितना मुश्किल होता है ;
और पब में 
चार लोगों की मस्ती का 
आठ हजार का बिल
भरना कितना आसान !!

सरकार 
बनाती है 
योजनायें और
स्लोगन 
"पढ़ेगा इंडिया तभी बढ़ेगा इंडिया"
पर 
योजनायें नेता और 
अधिकारियों के
 खर्च भर को रह जाती हैं
और 
स्लोगन ..........................!!!!

क्या कभी 
कोई ऐसी भी 
योजना बनेगी 
जब सरकारी 
स्कूलों में 
'मिड डे मील' 
और 'ड्रेस कोड' से 
निकल कर "इन"
दलितों के कल का 
उजाला बनकर 
इनका भविष्य 
रौशन कर पायेगी,
या यूँ ही ????????

टिप्पणियाँ

  1. बहुत खूब . सुन्दर प्रस्तुति . सुंदर चिंतन

    जवाब देंहटाएं

  2. दिनांक 10/02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. चार लोगो का पेट भरना
    और झुग्गी का
    किराया देना
    कितना मुश्किल होता है ;
    और पब में
    चार लोगों की मस्ती का
    आठ हजार का बिल
    भरना कितना आसान !!ek katu satya,bahut hi sundar

    जवाब देंहटाएं
  4. एक कसक भरी रचना ! समाज में व्याप्त वैषम्य को आपने कितनी सादगी से लेकिन प्रभावी ढंग से बयान कर दिया ! बहुत सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।