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एक सूखी नदी


नदी
जो कभी
भरी थी यौवन से,
सदियों की
सभ्यताएं
करती थीं
अठखेलियाँ 
इसकी उर्मियों में;
अब 
सूख चुकी है
पूरी तरह
अवशेषित और 
लुप्त हो गयी है!


हाँ,
इसकी तलहटी में बसे 
गाँवों को 
बाढ़ का खतरा 
नहीं है अब;
" कर्मांशा" 
हार चुकी है!

लेकिन 
इसके दोनों ओर
हरे जंगल
और वन्य जीव 
भी लुप्त हो गए हैं;
समय के साथ 
अब किसी 
पूर्णिमा या
अमावस पर
नहीं लगता 
जमावड़ा 
दूर-दूर  से 
आये हुए 
जन सैलाबों का;

नदी के सूखने पर 
नष्ट हो जाती हैं 
सदियों की संस्कृति
और सूख जाया करती हैं 
सभ्यताएं!

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर......
    जीवन के प्रतीक हैं नदियाँ......
    बहुत अच्छी रचना.

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. नदी के सूखने पर
    नष्ट हो जाती हैं
    सदियों की संस्कृति
    और सूख जाया करती हैं
    सभ्यताएं!बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,,,

    RECENT POST : प्यार में दर्द है,

    जवाब देंहटाएं
  3. नदी के सूखने पर
    नष्ट हो जाती हैं
    सदियों की संस्कृति
    और सूख जाया करती हैं
    सभ्यताएं!-
    सभ्यता का मूलस्रोत नदियाँ हैं
    latest post तुम अनन्त

    जवाब देंहटाएं
  4. भावी अवसादों से आगाह कराती रचना - अति सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर शब्द संयोजन और प्रभावशाली लेखन , बहुत बधाई आपको ।

    जवाब देंहटाएं

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