लक्ष्य विहीन
किस पथ पर क्लांत !
प्रबाध है तू गतिमान ?
किस हेतु
कर रहा अन्तस् श्रांत;
हो प्रमिलित
व्यर्थ कर रहा श्राम!
ओ पथिक!
पथ से होकर भ्रांत;
तंद्रित हो,
रह गया अज्ञान !
भूल गया तू,
क्यों बना है कृत्यांत!
व्यर्थ न कर क्षण
है लक्ष्य तेरा निर्वाण !
सिख देती लाजवाब पोस्ट
जवाब देंहटाएंपधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)
राह दिखाती पंक्तियाँ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दसंयोजन...
अनु
लक्ष्य सबका निर्वाण ही है। नए शब्द-संयोजन से युक्त सार्थक कविता।
जवाब देंहटाएंप्रेरक पंक्तियाँ...!!!
जवाब देंहटाएंसार्थक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंरंगीन दुनिया के चक्कर में पथिक लक्ष्य से भ्रमित हो गए हैं .सच कहा आपने
latest post सुहाने सपने
bahut sundar prastuti ...badhai
जवाब देंहटाएंswagat hai http://sapne-shashi.blogspot.com
sundar shabd sanyojan ...
जवाब देंहटाएंशानदार सार्थक प्रस्तुति हेतु बधाई
जवाब देंहटाएंभाव प्रेरक है!
जवाब देंहटाएंअति उत्तम ...आभार
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर रचना..
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