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! अंतिम लक्ष्य !


लक्ष्य विहीन 
किस पथ पर क्लांत !
प्रबाध है तू गतिमान ?

किस हेतु
कर रहा अन्तस् श्रांत;
हो प्रमिलित 
व्यर्थ कर रहा श्राम!
ओ पथिक!
पथ से होकर भ्रांत;
तंद्रित हो,
रह गया अज्ञान !

भूल गया तू,
क्यों बना है कृत्यांत!
व्यर्थ न कर क्षण 
है लक्ष्य तेरा निर्वाण !
-- 

टिप्पणियाँ

  1. राह दिखाती पंक्तियाँ...
    सुन्दर शब्दसंयोजन...

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. लक्ष्‍य सबका निर्वाण ही है। नए शब्‍द-संयोजन से युक्‍त सार्थक कविता।

    जवाब देंहटाएं

  3. रंगीन दुनिया के चक्कर में पथिक लक्ष्य से भ्रमित हो गए हैं .सच कहा आपने
    latest post सुहाने सपने

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार सार्थक प्रस्तुति हेतु बधाई

    जवाब देंहटाएं

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