सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

श्रमिक !

लफ्ज दर लफ्ज 
जिन्दगी जीता 
कभी धरती के सीने को 
फाड कर उगाता जीवन;

पहाडों को फोडकर;
निकालता नदियाँ ।

जिसकी पसीने की 
हर एक बूंद दर्शन का
ग्रन्थ रचती ।

उसके जीवन का
हर गुजरता क्षण
ऋचाएं रचता ;


हर सभ्यता का निर्माता
तिरष्कृत और बहिष्कृत
ही रहा सदियों से।

टिप्पणियाँ

  1. श्रमिक के जीवन पर विचारणीय कविता-पाठ। कृपया(हर सभ्‍यता) या (सभ्‍यताओं) में से एक का चुनाव करें।

    जवाब देंहटाएं
  2. ऋचाएं रचता जीवन जो प्रणम्य है वही रहता है तिरस्कृत!
    यही तो विडम्बना है!

    सुन्दर रचना!

    जवाब देंहटाएं
  3. हाड तोड़ मेहनत के बाद भी वंचित सम्मान से , अर्थ से !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर. जिनका वास्तव में पसीना में बहता है वो गुमनामी में ही रहते हैं . बारीकी से गौर करने हर क्षेत्र में कुछ ना कुछ ऐसा दिखेगा.

    जवाब देंहटाएं
  5. श्रामिक के जीवन की गाथा ... बहुत ही प्रभावी, कम शब्दों में पूरा ग्रन्थ लिख दिया .... नमन है अनाम श्रमिक को ...

    जवाब देंहटाएं
  6. जिसकी पसीने की
    हर एक बूंद दर्शन का
    ग्रन्थ रचती ।

    उसके जीवन का
    हर गुजरता क्षण
    ऋचाएं रचता ;

    हर सभ्यता का निर्माता
    तिरष्कृत और बहिष्कृत
    ही रहा सदियों से।
    बहुत सार्थक शब्द संयोजन

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।