लफ्ज दर लफ्ज
जिन्दगी जीता
कभी धरती के सीने को
फाड कर उगाता जीवन;
पहाडों को फोडकर;
निकालता नदियाँ ।
जिसकी पसीने की
हर एक बूंद दर्शन का
ग्रन्थ रचती ।
उसके जीवन का
हर गुजरता क्षण
ऋचाएं रचता ;
हर सभ्यता का निर्माता
तिरष्कृत और बहिष्कृत
ही रहा सदियों से।
जिन्दगी जीता
कभी धरती के सीने को
फाड कर उगाता जीवन;
पहाडों को फोडकर;
निकालता नदियाँ ।
जिसकी पसीने की
हर एक बूंद दर्शन का
ग्रन्थ रचती ।
उसके जीवन का
हर गुजरता क्षण
ऋचाएं रचता ;
हर सभ्यता का निर्माता
तिरष्कृत और बहिष्कृत
ही रहा सदियों से।
श्रमिक के जीवन पर विचारणीय कविता-पाठ। कृपया(हर सभ्यता) या (सभ्यताओं) में से एक का चुनाव करें।
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद !
हटाएंत्रुटि सुधार ली !
बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंविचारणीय भाव.....
अनु
ऋचाएं रचता जीवन जो प्रणम्य है वही रहता है तिरस्कृत!
जवाब देंहटाएंयही तो विडम्बना है!
सुन्दर रचना!
बहुत सुंदर श्रमिक के जीवन पर लेखांकन |
जवाब देंहटाएंश्रमेव जयते |
“सफल होना कोई बडो का खेल नही बाबू मोशाय ! यह बच्चों का खेल हैं”!{सचित्र}
“जिंदगी {आपसे कुछ कह रही हैं ....}
सुन्दर रचना ...बधाई।
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachna............badhai
जवाब देंहटाएंहाड तोड़ मेहनत के बाद भी वंचित सम्मान से , अर्थ से !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. जिनका वास्तव में पसीना में बहता है वो गुमनामी में ही रहते हैं . बारीकी से गौर करने हर क्षेत्र में कुछ ना कुछ ऐसा दिखेगा.
जवाब देंहटाएंश्रामिक के जीवन की गाथा ... बहुत ही प्रभावी, कम शब्दों में पूरा ग्रन्थ लिख दिया .... नमन है अनाम श्रमिक को ...
जवाब देंहटाएंजिसकी पसीने की
जवाब देंहटाएंहर एक बूंद दर्शन का
ग्रन्थ रचती ।
उसके जीवन का
हर गुजरता क्षण
ऋचाएं रचता ;
हर सभ्यता का निर्माता
तिरष्कृत और बहिष्कृत
ही रहा सदियों से।
बहुत सार्थक शब्द संयोजन