अभी कल ही लगा था कि
देश आजाद हो गया है !
भले ही दो टुकड़े
होने के बाद
और "ग़दर" या
'शरणार्थियों' की
बदत्तर हालातों से परे,
देश ने भी महसूसा था
आज़ादी पन को !
देश आजाद हो गया है !
भले ही दो टुकड़े
होने के बाद
और "ग़दर" या
'शरणार्थियों' की
बदत्तर हालातों से परे,
देश ने भी महसूसा था
आज़ादी पन को !
धीरे-धीरे
बीत गये छियासठ बरस
चमकती आँखों की
शून्यता में वो सरे
सपने ,
लोकतंत्र की राजनीति की
भेंट चढ़ गये !
अब राजनेता
या
'कार्पोरेट' ही मनाते हैं
आज़ादी का उल्लास!
और
किसान का बच्चा
अब भी खड़ा है'
सर झुकाए
यस सर या
हाँ, मालिक !
एक सिवा
उसे नहीं है
आज़ादी बिसलेरी के बचे
हुए पानी को
भी पीने की !
४७ से १३ तक
कुछ बदला है तो
बस एक
"कैलेंडर"
कैलेण्डर की यह तारीख बदलाव की अनुगूंज बने...
जवाब देंहटाएंबाकी स्थिति तो वैसी ही है जैसा आपने लिखा है!
४७ से १३ तक
जवाब देंहटाएंकुछ बदला है तो
बस एक
"कैलेंडर"...Bahut sarthk aur badiya kavita ....!
बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति ,,
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST: आज़ादी की वर्षगांठ.
बदला कुछ नहीं ,केवल गोरे के बदले काले लोग कुर्सी पर बैठ गए है
जवाब देंहटाएंlatest os मैं हूँ भारतवासी।
latest post नेता उवाच !!!
बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति ,,
जवाब देंहटाएंएक अच्छी बात है कि परिवर्तन का दौर चल रहा है और वो भी बेहतरी की दिशा में. किसी भी तंत्र को परिपक्व होने में समय तो लगता ही है. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सत्य बात कही आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सच कहा है बदला है तो बस केलेंडर या नेताओं और अमीरों की तिजोरी ...
जवाब देंहटाएंजनता का तंत्र तो कहीं खो गया है ...
तंत्र बदल गया ....शासक तो शासक ही है
जवाब देंहटाएंसुंदर ..प्रभावी रचना ..वाह आह के साथ
बिल्कुल ! यही तो हुआ है , या हो रहा है ! हर साल एक नया कैलेंडर आ जाता है , एक नई उम्मीद लिए ! और हर बार बस वही आज़ादी को ढूंढते हैं ! बहुत ही सटीक शब्द
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