मैंने भी बादल की
एक बूँद के
इन्तजार में;
इन्तजार में;
बिताया है
पूरा एक बरस !
फिर मन मार कर
फिर मन मार कर
धरती की छाती में
धँसा दिया
नुकीला हल !
क्योंकि
मुझे तो निभाना ही था,
भले ही
क्योंकि
मुझे तो निभाना ही था,
एक किसान का धर्म ;
भले ही
नष्ट हो जाय
एक और सभ्यता
अपने विकास के
चरमोत्कर्ष
परिणामों से !
मुझे तो निभाना ही था,
जवाब देंहटाएंएक किसान का धर्म ;
बहुत सुंदर भाव ,,,
RECENT POST : पाँच( दोहे )
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (02.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
जवाब देंहटाएंdhanyvaad neeraj ji.
हटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति .खुबसूरत रचना ,कभी यहाँ भी पधारें।
जवाब देंहटाएंसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
मैंने तो निभाना है धर्म ...
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों के भार पर ही पृथ्वी टिकी रहती है ...
मुझे तो निभाना ही था,
जवाब देंहटाएंएक किसान का धर्म ;
काश ! हर कोई अपने धर्म और अपने कर्म को समझे