हर वो जंजीर
जो जकड़े हुए है
तुम्हें दासता
या विवशता में,
तोड़ना होगा।
और हाँ
अपनी कोमलता
और सहृदयता को
अब आयुध में
बदलना होगा।।
पर ध्यान रहे
तुम्हारा दायित्व
सृजन का है,
कहीं यह रौद्रता
प्रलयंकर न बन जाए।।
जो जकड़े हुए है
तुम्हें दासता
या विवशता में,
तोड़ना होगा।
और हाँ
अपनी कोमलता
और सहृदयता को
अब आयुध में
बदलना होगा।।
पर ध्यान रहे
तुम्हारा दायित्व
सृजन का है,
कहीं यह रौद्रता
प्रलयंकर न बन जाए।।
एक कविता की तरह बहती हुई लेखनी....
जवाब देंहटाएंनव-सृजन के विकास हेतु स्नेहिल कोमलता चाहिये ,जो निरापद, निश्चिंत स्थिति में संभव है -कोई भी सृजन हो शान्ति और संरक्षण में समुचित पोषिण पाता है , संघर्षण और आयुध धारने की विवशता में रौद्र और भीषणता से कैसे बचेगा कोई ?
जवाब देंहटाएंरौद्र होकर संयम न खोना बड़ा जटिल काम है....
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना..
अनु
आह्वान है ये कविता .. उत्प्रेरित करते भाव ..
जवाब देंहटाएंatiutam-***
जवाब देंहटाएंपर ध्यान रहे
जवाब देंहटाएंतुम्हारा दायित्व
सृजन का है,
कहीं यह रौद्रता
प्रलयंकर न बन जाए।।
सुन्दर रचना