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आह्वान

हर वो जंजीर
जो जकड़े हुए है
तुम्हें दासता
या विवशता में,
तोड़ना होगा।


और हाँ
अपनी कोमलता
और सहृदयता को
अब आयुध में
बदलना होगा।।


पर ध्यान रहे
तुम्हारा दायित्व
सृजन का है,
कहीं यह रौद्रता
प्रलयंकर न बन जाए।।

टिप्पणियाँ

  1. नव-सृजन के विकास हेतु स्नेहिल कोमलता चाहिये ,जो निरापद, निश्चिंत स्थिति में संभव है -कोई भी सृजन हो शान्ति और संरक्षण में समुचित पोषिण पाता है , संघर्षण और आयुध धारने की विवशता में रौद्र और भीषणता से कैसे बचेगा कोई ?

    जवाब देंहटाएं
  2. रौद्र होकर संयम न खोना बड़ा जटिल काम है....
    अच्छी रचना..

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. आह्वान है ये कविता .. उत्प्रेरित करते भाव ..

    जवाब देंहटाएं
  4. पर ध्यान रहे
    तुम्हारा दायित्व
    सृजन का है,
    कहीं यह रौद्रता
    प्रलयंकर न बन जाए।।
    सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं

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