सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

"पुष्प की आत्मकथा "


प्रात ही मैं  
रवि रश्मियों से 
होकर आलोकित /
जीवन में मृदुल 
मुस्कान भरने हेतु ,
हुआ था मुकुलित/
नव चेतना लाने को
नव उमंग भरने हेतु ,
करने को मन पुलकित/


आशा थी 
जीवन के लघु पलों में ,
इतिहास रचूंगा /
बनूँगा मैं 
किसी के जीवन का आधार,
स्व को न निराश करूंगा/
जोडूंगा एक नया 
अध्याय ,
नव युग का विश्वास बनूँगा /


पर झंझा के 
तीक्ष्ण थपेड़ों ने 
अंग - प्रत्यंगों को कर दिया विदीर्ण /
आशा के प्रतिकूल 
रहा निराशमय जीवन 
तन मन हुआ छीर्ण 
व्यतीत हुए तीनों काल,
आलम्बन भी अब ,
हो चला जीर्ण /

भाग्य का अभीशाप कहूं 
या पूर्व जन्म का प्रायश्चित 
या तो हुआ न वनमाली को  गोचर ,
या राह गया मैं अवसर से वंचित /
बन सका न कृपा पात्र किसी का 
अटवि में पड़ा रह गया कदाचित 


कौतूहल से होकर भ्रांत,
प्रारब्ध को लब्ध मान,
जीवन कर्म को कर्तव्य जान 
निर्वाद से होकर भ्रांत ,
हेतु अस्तित्त्व की पहचान ,
कर रहा मैं जीवन दान /
यही है मानव तेरा भी जीवन 
मानवता हेतु , अब तू भी 
कर ले लक्ष्य संधान /


हे! अतिगव,
कृतान्त से अब न 
मुख मोड़
लक्ष्य प्राप्ति हेतु 
तू अब न 
कर्तव्य पथ छोड़,
कर कृतार्थ जीवन को 
निज प्राण को 
निर्वाण से जोड़/

टिप्पणियाँ

  1. शब्द प्राचुर्य और समृद्ध भाव... सौन्दर्य के नए प्रतिमान गढ़ रहे हैं... सुन्दर सृजन! बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. कर कृतार्त जीवन को
    निज प्राण को
    निर्वाण से जोड ।

    बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

अमरबेल

ये जो कैक्टस पर दिख रही है अमरबेल , जानते हो यह भी परजीवी है ठीक राजतन्त्र की तरह।   लेकिन लोकतंत्र में कितने दिन पनप सकेगी ये अमरबेल , खत्म होगा इसका भी अमरत्व आखिर एक दिन

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह