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"अतीत के अंश "

अतीत की स्मृति लहरी,
 क्यों कर तरंगित होती है?
 निशीथ की इस बेला में,
 क्यों व्यथा व्यथित बोती है?

 पंथ है जब पथ पर गतिज ,
 फिर क्यों यह बाधित होता है,
 व्यतीत कल के कलरव से,
 क्यों यह अंतस व्यथित होता है?

वेदना की व्यथा से होकर व्यथित ,
 लक्ष्य पथ से क्यों हो रहा विचलित,
 क्या कर्म पथ था त्रुटिपूर्ण जो अब
 निर्वाण पथ से कर रहा विछ्लित


क्या कुछ शेष रहा विशेष जो,
 करता तनमन को तपित,
 इस अटवि में आकर भी तू
 भ्रमित, तृषित सा है शापित


जीवन के निर्जन कानन में ,
 करता था नित नाव नंदन /
 श्रृद्धा पूर्ण था जीवन समर्पण ,
 भावना पूर्ण था देव वंदन /


था शांत स्थिर तटस्थ पर,
 करता था नूतन अभिनन्दन /
 सुख-दुःख ,राग द्वेष से हीन,
 मधुकामना से निर्लिप्त मन /


निष्पादित अश्रांत जीवन ,
 निर्वेद के रह्स्योंमीलानोद्यत /
 करता था मैं जीवन तपस्कर,
 लक्ष्य संधान हेतु था उद्यत /


जीवन लक्ष्य था मात्र निर्वाण ,
 कर्तव्य पथ पर था प्रबाध/
 गतिमान था महाकाल का चक्र ,
 आशा पूर्ण था जीवन निर्बाध /


जीवन की इस निशीथ बेला में ,
 क्यों विस्तृत होता कृतिका विवृत्त /
 है क्या शेष विस्मृत विशेष?
 या की रह गया जीवन निवृत्त !


स्मृति व्यतीत की जीवन को,
 कर देती है जब विकल /
 अंतस के गह्वर तम से ,
 विह्वल होता उर सकल /


स्मृति अतीत की कर देती स्पंदन तीव्र ,
 उर प्रांगण को कर उद्वेलित विह्वल /
 कर्म पथ पर पथिक हो जाता भ्रमित ,
 अप्राप्य की तृष्णा हो उठती तीव्र प्रबल /


इन वासित स्मृतियों में ,                                                    
 क्यों यह वेदना है पलती ?
 अश्रुओं की निस्त्रा क्यों कर ,
 है दृगांचल में मचलती ?
 ज्यों एक प्रस्तर खंड तड़ाग के ,


शांत तोय को कर देता है तरंगित /
 ज्यों वरिदों के घर्षण का गर्जन ,
 जड़ चेतन को कर देता है कम्पित/
 जाने क्यों होताहै स्मृत अतीत ,

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