पीड़ा भी थी,अनभूति भी ;
न थी तो अभिव्यक्ति !
जब हो गयी असहनीय
तो समाधान की लालसा में
भटकता शरीर,
पहुँच गया
चिर सखी गंगा के गोद में,
समा जाने को पूर्ण लालायित!
लेकिन; ममत्त्व ने
फिर विवश कर दिया
एक स्त्री और
माँ को जीने के लिए !
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