ऑक्टोपस;
सागर की तलहटी में,
या समाज की मुंडेर पर,
लीलते जलीय तुच्छ जन्तु
या जीते-जागते मानव का
पूरा-पूरा शरीर!
चूंस कर
उनकी रगों की रंगत,
व् निचोड़ कर
उसका मकरंद;
हमारे बीच,
हममें से ही
जाने कितने ऑक्टोपस
छिपे हुए
लपेटे चोला मानव का;
पहचानना होगा,
अंतर जानना होगा ,
हमें ऑक्टोपस से
मानव का !
कितना ही प्रयास कर लें पर पहचानना बहुत मुश्किल होता है औक्टोपस का । सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब |
जवाब देंहटाएंसत्य वचन महोदय ||
ऑक्टोपस हैं हर जगह, चूस रहें हैं खून।
जवाब देंहटाएंमानव बीच हरवक्त छुपे, अक्टूबर या जून ।।
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (05-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
वाह....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....
आठ भुजाओं वाले मनुष्य से बचना होगा...
अनु
ओक्टोपस से आदमी की तुलना बहुत अच्छी लगी |बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंहमे पहचाना होगा,अंतर जानना होगा,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: बात न करो,
अस्थाना सर ,
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम |
अपने बीच छुपे आक्टोपस को पहचानना तो बहुत ही जरूरी हैं |सार्थक लेखन |
पहचानना होगा,
जवाब देंहटाएंअंतर जानना होगा ,
हमें ऑक्टोपस से
मानव का !
बिल्कुल सही ...
बेटियां वरदान हैं
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