अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
अभी तो
बीते हैं
कुछ ही बरस,
कुछ भी
तो नहीं
हुआ है नीरस/
खुला ही
रहने दो
इस घर का यह दर.....!
अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
हर-
आहट पर,
चौंक उठती,
रह-रह कर
कहता
क्षण
धीरज धर,
भ्रम से
न मन भर ,
कहाँ
टूटी है
सावन की सब्र.....!
अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
अभी तो
ऑंखें ही
पथराई हैं,
कहाँ
अंतिम घड़ी
आयी है ,
अभी
प्रलय की
घटा कहाँ
छाई है,
देखूँगी
मैं अभी
उन्हें नयन भर....!
बहुत उम्दा,लाजबाब रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति बधाई भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं
जवाब देंहटाएंअभी तो
जवाब देंहटाएंआँखे ही
पत्थराई है
कहाँ अंतिम
घड़ी आई हैं।
वाह धीरेन्द्र जी .. किस कदर डूब कर लिखा हैं .. बहुत अच्छे
आभार !!
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंवाह----बहुत सही तर्कों को व्यक्त करती रचना-----बधाई
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