" कहने को मयस्सर हैं रोटियां,
पर कीमतें है यहाँ पर अलहदा ! "
एक तंत्री
अपनी पुरानी हस्त-तंत्री के
पास बैठा
कभी चूल्हे की ओर,
कभी हस्त-तंत्री पर,
उसकी झुर्रियों वाली
आँखें टिक जाती हैं!
कभी बुनता था
इन धागों से
अपनी जीविका और
जिन्दगी के दिन-रात,
" उड़ीसा के सोनपुर जिले में "कुस्टापाडा" के बुनकरों से बात करने के पश्चात !"
शब्दार्थ : हस्त -तंत्री= जुलाहे का करघा,
तंत्री= बुनकर !
पर कीमतें है यहाँ पर अलहदा ! "
एक तंत्री
अपनी पुरानी हस्त-तंत्री के
पास बैठा
कभी चूल्हे की ओर,
कभी हस्त-तंत्री पर,
उसकी झुर्रियों वाली
आँखें टिक जाती हैं!
कभी बुनता था
इन धागों से
अपनी जीविका और
जिन्दगी के दिन-रात,
हाँ " महाजन " के हजार रुपये
जो मजदूरी है
पांच तंत्रियों की
पूरे सात दिन की
भर देती है सूनी थाली
कुछ पलों के लिए !
जो मजदूरी है
पांच तंत्रियों की
पूरे सात दिन की
भर देती है सूनी थाली
कुछ पलों के लिए !
" उड़ीसा के सोनपुर जिले में "कुस्टापाडा" के बुनकरों से बात करने के पश्चात !"
शब्दार्थ : हस्त -तंत्री= जुलाहे का करघा,
तंत्री= बुनकर !
बहुत सुन्दर. विचार भी, प्रवाह भी, शैली भी.
जवाब देंहटाएंविचारों की बेहतरीन अभिव्यक्ति,,,धीरेन्द्र जी,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: बात न करो,
सुन्दर....
जवाब देंहटाएंमार्मिक चित्रण...
अनु
"कहने को मयस्सर हैं रोटियां
जवाब देंहटाएंपर कीमते है यहाँ पर अलहदा "
बेहद सटीक व सच्ची बात है वीरे..
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/12/blog-post.html
गहन अनुभति और विचारनीय विषय पर सुन्दर अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट "पर्यावरण-एक वसीयत " हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों में.
बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आज की मानवीय दशा जो की मानव द्वारा ही निर्मित हैं पर तीखा कटाक्ष
जवाब देंहटाएंwah jeevan ka sach or aaj ki parisithiyon par shandar rachna
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