मुझे वह मूल्य चाहिए!
जो मैंने चुकाया है,
तुम्हारे ज्ञान प्राप्ति हेतु,
हे! अमिताभ;
मुझे वह मूल्य चाहिए!
क्या पर्याप्त नहीं थे वो
चौदह वर्ष! कि पुनः
त्याग दिया सपुत्र!
तुम तो मर्यादा पुरुष थे
हे पुरुषोत्तम !
मुझे वह मूल्य चाहिए!
और हे जगपालक !
मेरा पतिव्रता होना भी
बन गया अभिशाप!
और देव कल्याण हेतु;
भंग कर दिए
स्व निर्मित नियम !
हे जगतपति !
मुझे वह मूल्य चाहिए!
पर सोंच कर परिणाम;
दे रही हूँ क्षमा दान,
क्योंकि मेरा त्याग
न हो जाय कलंकित और मूल्यहीन!
रहने दो इसे अमूल्य;
नहीं! वह मूल्य चाहिए!
वाह !!!!! बहुत शानदार भावपूर्ण पंक्तियाँ !!बधाई जी..
जवाब देंहटाएंrecent post: रूप संवारा नहीं...
अब भी कहाँ मांग पाती है नारी मूल्य .... गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
जवाब देंहटाएं। लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है!
सूचनार्थ!
सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरहने दो इसे अमूल्य;
जवाब देंहटाएंनहीं! वह मूल्य चाहिए!
अद्धभुत अभिव्यक्ति!!
वाह ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंक्षमा वीरस्य भूषणं. सुंदर भावपूर्ण कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया कहन और कथन जीवन की रचना
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