घिसटते हुए
पैरों में पड़े छाले;
और अंत हीन
ये उलझे हुए रास्ते!
थकी हुयी जिन्दगी
और बोझिल सांसें,
नहीं थकती तो
जिजीविषा और
न खत्म होने वाली
चिर आकांक्षा !
सभी गतिमान हैं
अनंत की ओर
अनंत काल के लिए !
अंत हीन यात्रा पर !
नहीं थकती तो जिजीविषा .... यह कविता एक गंभीर चिंतन है .
जवाब देंहटाएंधीरेन्द्र भाई
जवाब देंहटाएंइस गम्भीर कविता को पढ़ कर समझना मेरे बस में नहीं
इसे साथ ला जा रहीं हूँ नई-पुरानी हलचल में
मिल-बैठ कर पढ़ेंगे सभी इसी शनिवार 15-9 को
आप भी आइये न... अपनी पूर्व परिचित नई-पुरानी हलचल में
इसी शनिवार 15-9 को
सादर
यशोदा
जिजीविषा ही नहीं थकनी चाहिए ..... सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंयह जिजीविषा ही तो उसकी शक्ति है ...सुन्दर और गहन !
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंवो मंज़िल क्या..जिसे पाने को..
पैरों के छाले फूटे ना....
इस यात्रा को यूं चलते ही रहना है,जीवन की यही नियति है।
जवाब देंहटाएंसादर
सच, हम सभी अनंत यात्रा के यात्री हैं
जवाब देंहटाएंएकदम आध्यात्मिक । अनंत की और अनंत यात्रा के साथी ।
जवाब देंहटाएंयथार्थमय सुन्दर पोस्ट
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