लक्ष्य विहीन पथ पर;
भ्रमित गतिज है
यह जीवन!
न स्थायित्व
न ही आलम्बन दृढ़;
नीरवता और भी
गह्वर हो रही है!
जीवन- लक्ष्य में भटकाव है!
सांसों की गतिशीलता
जीवन लक्षण है, लक्ष्य नही!
सृजेयता की आशाओं को
व्यर्थ न करो!
तुम्हीं तो कृत्यांत हो
इस सृजन बिंदु के!
सृजन से ही गतिशीलता आती है ॥सुंदर
जवाब देंहटाएंगूढ दार्शनिक संदेश सब समझ कर भी ना समझ बने रहेंगे।
जवाब देंहटाएंभ्रमित होने से बचना भी जरुरी हैं ..
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