सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

उदासी उस रात की -3


उदासी उस रात की - भाग -1

रात का हिसाब
माँगने जब चाँद,
आयेगा तुम्हारे पास !

सांसों की गर्म तपिस में
झुलसी वो बिस्तर की
सलवटें कैसे बयाँ कर पाएंगी
गुजरी रात की वो दास्ताँ !

अपलक आँखों से
इन्तजार में गुजार दी
जो तुमने वो रात
अपने चाँद के लिए !!

तुमने तो पढ़ लिए थे,
काम के सभी सूत्र
अपनी आँखों के स्वप्न में !

टूट चुका था बदन
मिलन की  कल्पना से,
रह गयी थी शेष
वेदना आछिन्न ह्रदय में !

आया जब चाँद
खिड़की पर तुम्हारी
वह भी कराह उठा,
देख कर उदास रात को !

चला गया वापस
प्रेयसी को उदास पाकर:
डर था उसे कहीं
देर से आने का हिसाब
न देना पड़ जाय उसे  !!





उदासी उस रात की - भाग -२ 


गुमसुम उदास है
तब से यह चाँद;
उस रोज जब
चाँद आया था;
तुम्हारी खिड़की पर!



दरवाजे पर
अपलक ठहरी हुयी
आँखों में पाकर;
किसी की प्रतीक्षा,
ठिठक गया था चाँद;
उस रोज जब
चाँद आया था;
तुम्हारी खिड़की पर!



मानो तुम्हारी तपिस में
झुलस गयी है,
ज्योत्स्ना की स्निग्धता,
और तबसे सुलग
रहा है यह चाँद!
उस रोज जब
चाँद आया था;
तुम्हारी खिड़की पर!


चाँद को अब भी
याद है वह पूनम
जब तुम्हारी आतुरता
और विह्वलता में
हो गयी थी अमावस!
उस रोज जब
चाँद आया था;
तुम्हारी खिड़की पर!



पीला पड़ गया था
वह भोर तक
तुम्हारी प्रतीक्षा की
निष्ठा और मिलन की
उत्कंठा को देख कर!
उस रोज जब
चाँद आया था;
तुम्हारी खिड़की पर!


उदासी उस रात की -3


जब ये चाँद 
आता है खिड़की पर,
तेरी यादों का 
हर मंजर साथ ले आता है ! 

तुम्हारे संग
गुजरे हर वो पल
बस गये हैं
साँस-साँस में!
ठहरी हुयी सी
लगती है ये सांसें 
इन रातों के संग
चाँद भी उदासी का 
हर सबब छोड़ जाता है !  

जब से तुम चले गये,
यह रोज तुम्हारे इन्तजार में 
आता है खिड़की पर,
लेकिन तम्हारा आना 
अब केवल कल्पना में ही 
सम्भव लगता है!


-- 

टिप्पणियाँ

  1. मन को छूते भाव ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. प्यार, मिलना और फिर बिछड़ जाना ..एक गहरी अभिव्यक्ति ...सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. गहरी उदासी का भाव लिए ह्रदय स्पर्शी रचना -बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  4. इंतजार से भरी भावनाएं फुट पड़ी है आज इस एक मात्र ग्वाह चाँद को देख कर :)

    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

अमरबेल

ये जो कैक्टस पर दिख रही है अमरबेल , जानते हो यह भी परजीवी है ठीक राजतन्त्र की तरह।   लेकिन लोकतंत्र में कितने दिन पनप सकेगी ये अमरबेल , खत्म होगा इसका भी अमरत्व आखिर एक दिन

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह