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क्रंदन !


आह;
निकल पड़े,
वेदना के स्वर 
देख मानव का पतन !

मानव की
यह निष्ठुरता,
लुप्त प्राय सहिष्णुता;
पाषाण भी करता रुदन !

पर पीड़ा पर 
परिहास,
निज सूत का जननी पर त्रास;
धनार्जन हेतु
निर्लज्ज प्रयास;
कर रही मानवता क्रंदन !

आह;
निकल पड़े,
वेदना के स्वर 
देख मानव का पतन !

टिप्पणियाँ

  1. रोते रहे हम खून के आँसू.....पतन रुकता नहीं..
    :-(

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. ना जाने कहाँ जाकर थमेगा ये पतन का सिलसिला...

    जवाब देंहटाएं

  4. आह;
    निकल पड़े,
    वेदना के स्वर
    देख मानव का पतन !
    बहुत बेहतरीन सुंदर रचना !!!
    RECENT POST: जुल्म

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत मार्मिक और भावपूर्ण रचना | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

    जवाब देंहटाएं
  6. निज सूत का जननी पर त्रास ही तो हो रहा है। विचारणीय।

    जवाब देंहटाएं
  7. खूबसूरत अभिव्यक्ति वेदना की. यथार्थ को बखूबी बयान किया है आपने.

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत गहन विचार लिए अभिव्यक्ति |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  9. पर पीड़ा पर
    परिहास,
    निज सूत का जननी पर त्रास;
    धनार्जन हेतु
    निर्लज्ज प्रयास;
    कर रही मानवता क्रंदन ....

    सटीक परिभाषित किया है मानवता है ... बहुत खूब ...

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर अभिवय्क्ति आपको बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. धर्नाजन के लिए मानवीय भाव खोते जाने का वास्तविक वर्णन। सहीष्णुता का लुप्त होना होना और पाषाण का रूदन करना मनुष्य की निष्रुता को और गाढा करता है।
    drvtshinde.blogspot.com

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  12. आह;निकल पड़े,वेदना के स्वर देख मानव का पतन !................बहुत सही बात

    जवाब देंहटाएं

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