मेरा यह नेह निमंत्रण;
कर लो तुम स्वीकार!
द्वंद्व आज मंद न हो जाए;
मन सागर की लहरों का!
बरबस यूँ ही छलक न जाय;
मधुरिम प्याला अधरों का!!
पढकर नयनों की भाषा;
व्यर्थ न जाने दो मनुहार,
मेरा यह नेह निमंत्रण;
कर लो तुम स्वीकार!
प्रणय की भाषा से;
चिर परिचय तुम्हारा है!
अपराजिता है रजनी;
कहाँ चाँद अभी हारा है !!
भर कर नेह की हाला तुम;
कर दो हृदय अभिसार,
मेरा यह नेह निमंत्रण;
कर लो तुम स्वीकार!
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
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