आज फूलों को ही आंधियों से टकराना होगा!
लाख तूफाँ कोशिश करले;
विनाश की हदें पार कर ले,
बवंडर कितना ही तीव्र हो;
आज कश्ती को भीच भंवर पार जाना होगा !
आज फूलों को ही आंधियों से टकराना होगा!
सदियाँ गुजर गईं विध्वंस में;
खिंच गईं तलवारें वंश-वंश में,
कर्म गीता का पढकर पाठ;
अर्जुन को 'भारत' का इतिहास दोहराना होगा !
आज फूलों को ही आंधियों से टकराना होगा!
एक बार फिर आग दो मशाल को;
क्रांति पर्व में चढ़ा दो निज भाल को,
परिवर्तन है चिर नियम प्रकृति का;
सृजन के पथ पर वीरों को कदम बढ़ाना होगा !
आज फूलों को ही आंधियों से टकराना होगा!
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
कल 19/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
वाह.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना...
अनु
प्रभावशाली रचना.....
जवाब देंहटाएंachchhe bhaav , achchhee rachanaa
जवाब देंहटाएंसच कहा ....जब तक कमजोर अपनी ताकत नहीं पहचानेगा .....कुछ नहीं होगा .....बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंप्रेरित करती रचना....
:-)
सभी सुधी पाठकों का आभार !
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