क्षुधाकुल होकर जब;
भोजन हेतु लड़ना पड़ता है,
जीवन के अश्मर पथ पर
जब प्रस्तर बनाना पड़ता है!
गीता का दर्शन, गाँधी का सत्य;
बुद्ध की अहिंसा पीछे छूट जाती है!
जब फावड़ा और कुदाल संग,
जेठ की तपिश में कमर टूट जाती है!
न गौरव गरिमा का ध्यान,
न अस्मिता जाने पर ग्लानि होती है!
उदराग्नि की शांति हेतु;
अमानुषिकता पर न म्लानि होती है!!
इस नीरस प्राण हेतु मानव;
जब स्व सुता का मोल लगाता है!
मानवता तृण-तृण हो जाती है,
जब नारी को क्षुण धन से तोला जाता है
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