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क्षुधा

क्षुधाकुल होकर जब;
भोजन हेतु लड़ना पड़ता है,
जीवन के अश्मर पथ पर
जब प्रस्तर बनाना पड़ता है!
गीता का दर्शन, गाँधी का सत्य;
बुद्ध की अहिंसा पीछे छूट जाती है!
जब फावड़ा और कुदाल संग,
जेठ की तपिश में कमर टूट जाती है!
न  गौरव  गरिमा का ध्यान,
न अस्मिता जाने पर ग्लानि होती है!
उदराग्नि की शांति हेतु;
अमानुषिकता पर न म्लानि होती है!!
इस नीरस प्राण हेतु मानव;
जब स्व सुता का मोल लगाता है!
मानवता तृण-तृण हो जाती है,
जब नारी को क्षुण धन से तोला जाता है

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मतलब का मतलब......

 मतलब की दुनिया है-जानते सभी हैं, फिर भी यहाँ मतलब निकालते सभी हैं। अपनापन एक दिखावा भर है फिर भी, जाहिर भले हो लेकिन जताते सभी हैं। झूठी शान -ओ-शौकत चंद लम्हों की है, ये जानते हुए भी दिखाते सभी हैं। नहीं रहेगी ये दौलत सदा किसी की,  जमाने में पाकर इठलाते सभी हैं। मौत है मुत्मइन इक न इक दिन आएगी, न जाने क्यूँ मातम मनाते सभी हैं।

स्त्री !

चाणक्य ! तुमने कितनी , सहजता से कर दिया था; एक स्त्री की जीविका का विभाजन ! पर, तुम भूल गये! या तुम्हारे स्वार्थी पुरुष ने उसकी आवश्यकताओं और आकाँक्षाओं को नहीं देखा था! तुम्हें तनिक भी, उसका विचार नही आया; दिन - रात सब उसके तुमने अपने हिस्से कर लिए! और उसका एक पल भी नहीं छोड़ा उसके स्वयं के जीवन जीने के लिए!

पानी वाला घर :

समूह में विलाप करती स्त्रियों का स्‍वर भले ही एक है उनका रोना एक नहीं... रो रही होती है स्‍त्री अपनी-अपनी वजह से सामूहिक बहाने पर.... कि रोना जो उसने बड़े धैर्य से बचाए रखा, समेटकर रखा अपने तईं... कितने ही मौकों का, इस मौके के लिए...।  बेमौका नहीं रोती स्‍त्री.... मौके तलाशकर रोती है धु्आं हो कि छौंक की तीखी गंध...या स्‍नानघर का टपकता नल...। पानियों से बनी है स्‍त्री बर्फ हो जाए कि भाप पानी बना रहता है भीतर स्‍त्री पानी का घर है और घर स्‍त्री की सीमा....। स्‍त्री पानी को बेघर नहीं कर सकती पानी घर बदलता नहीं....। विलाप.... नदी का किनारों तक आकर लौट जाना है तटबंधों पर लगे मेले बांध लेते हैं उसे याद दिलाते हैं कि- उसका बहना एक उत्‍सव है उसका होना एक मंगल नदी को नदी में ही रहना है पानी को घर में रहना है और घर बंधा रहता है स्‍त्री के होने तक...। घर का आंगन सीमाएं तोड़कर नहीं जाता गली में.... गली नहीं आती कभी पलकों के द्वार हठात खोलकर आंगन तक...। घुटन को न कह पाने की घुटन उसका अतिरिक्‍त हिस्‍सा है... स्‍त्री गली में झांकती है, गलियां सब आखिरी सिरे पर बन्‍द हैं....। ....गली की उस ओ...