सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अन्तर्द्वन्द्व

अन्तर्द्वन्द्व उद्वेलित करता 
अंतर्मन को,
क्या? 
इस निबड़े तम पश्चात 
निशा के व्यतीत होने पर,
अरुणोदय की लाली 
पुन: शृंगार करेगी 
इस धरा का?

या यूं ही 
निराशा की इस निशा में 
निशांत के नक्षत्र सदृश्य ,
आशा का आभास हो जायेगा अदृश्य!

क्या कल्पना -
कल्पना ही रहेगी
या होगी साकार?

क्या अत्क की 
स्वर्णिम रश्मियाँ 
धरा के कंठ में 
नहीं डालेंगी  मुक्ताहार ?

क्या श्रांत हो चला वह भी -
निमीलित कर लो चक्षु ,
अब प्रकाश अर्थ हीन होगया !

ठहरो !
वह देखो दूर कहीं,
टिमटिमा रहा है ज्योतिपुंज ,
प्रतीक्षा में वह 
प्रकाश का परिचय करा रहा है/

अरे! हाँ देखो,
प्राची से कुछ बधूटिकाएं 
शृंगार थाल लिए 
चली आ रहीं हैं 
धरा की ओर,
करने को शृंगार,
डालने को मुक्ताहार !

अवगुंठन हटा दो,
स्वयं को जागृत करो,
अब निशा छटने वाली है 
वह देखो दूर 
वहाँ क्षितिज पर 
आशा की पौ फटने वाली है !

टिप्पणियाँ

  1. क्या श्रांत हो चला वह भी
    निमीलित कर लो चक्षु
    अब प्रकाश अर्थहीन हो गया
    (बहूत सुंदर वाह )
    क्या जीवन मे समझोता हो गया ?

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर भाव लिए सार्थक रचना |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही भावनामई रचना शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन

    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।