जरा सम्भाल के दफ़्न करना मुझे,
धडकनों से वो अभी-अभी जुदा हुए हैं !
मना तो लेते उन्हें हर एक शर्त पे,
न जाने वो किस बात पर खफ़ा हुए हैं!
इल्जाम उन पर न आये इन जख्मों के,
जिस कदर मेरे दिल पे जफ़ा हुए हैं !
उन की सदायें जो थीं साथ मेरे,
हक उन दुआओं के सब अदा हुए हैं !
अब तक थे ख़यालों में खोये हुए,
जिन्दगी से अभी-अभी अता हुए हैं!
जरा सम्भाल के दफ़्न करना मुझे,
धडकनों से वो अभी-अभी जुदा हुए हैं !
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंभावमय बेहतरीन गजल,,,,,के लिये बधाई,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: यादों की ओढ़नी
बेहतरीन गज़ल
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल..
जवाब देंहटाएं:-)
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत...!
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंदिल को छूती हुई , सुन्दर गज़ल !!!
जवाब देंहटाएंवाह धीरेन्द्र जी....
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत और नाज़ुक सी गज़ल....
अनु
बहुत ख़ूबसूरत...
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