टूट कर जो न बिखरे वो शख्सियत है,
वरना जमाने में कमी नहीं आदमी की !
गिर कर जो फिर सम्भल जाय ठोकरों से,
देता है जमाना मिसाल उस आदमी की !
हर एक गम में जो मुस्कराता रहे सदा,
पूरी होती तमन्ना-ए-जिन्दगी उस आदमी की !
हालतों से लड़ जीत लेता है जो जंग-ए- जिन्दगी,
आसाँ हो जाती है राह -ए-मंजिल उस आदमी की !
जो बनता है मुकद्दर मिटाकर खुद की हस्ती को,
और भी संवर जाती है जिन्दगी उस आदमी की !
टूट कर जो न बिखरे वो शख्सियत है,
वरना जमाने में कमी नहीं आदमी की !
सच है आदमी हर कठिनाई से मुक़ाबला कर सकता है ....
जवाब देंहटाएंहर दर्द सीने में छिपा लेते है ,हर शख्स को अपना बना लेते हैं ,शानदार पोस्ट ,बधाई |आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ|
जवाब देंहटाएंजीवन के विविध प्रसंगों को समेटे आपकी रचना सार्थक है ...!
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति...!!
कुछ ऐसे भी इंसान होते हैं...
दर्द सीने में छुपा लेते हैं...!
बढ़िया....
जवाब देंहटाएंसार्थक भाव लिए गज़ल...
अनु
सॉलिड
जवाब देंहटाएंढ़
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ए फीलिंग कॉल्ड.....
बहुत सुन्दर भाव लिए सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
:-)
बेहद प्रभावशाली रचना ...
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावशाली रचना ...
जवाब देंहटाएंसच बात है ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया सम्प्रेषण!
शुभकामनायें आपको !