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स्त्रीत्व : समर्पण का छद्म पूर्ण सम्मान !

सुलगती आहों का ,

समन्दर लेकर वह;
जीती है जिन्दगी !
उसकी सर्द आहों की तपिश

झुलसा रही है;
सारे बदन को !


अंग-अंग
हो चुका है घायल;
उसके अपनों के दिए हुए
जख्मों से !


फिर भी वह,
जिए जा रही है
पीकर वेदना की लाल शिखाएं!
यातनाओं के सारे
आयाम पीछे छोड़ते हुए,
बस जीना ही जीना
सीखा है उसने!

कभी-कभी
सोंचती है;
कर दे बगावत,
नहीं चाहिए
उसको अब
कोई मिथ्या अस्तित्व !
और अभी तक
उसके अस्तित्व के
जो मिथ्या प्रतिमान हैं भी
वह कितने सार्थक?


नहीं अब मिटा देगी;
अपना यह मिथ्या अस्तित्व और
नहीं, चाहिए त्याग
और समर्पण का छद्म पूर्ण
सम्मान !

टिप्पणियाँ

  1. र्गा है दुर्गति की नाशक है फिर भी सिर्फ प्यार और स्नेह वश हो कर सब सहती हर तिरस्का भी अपमान भी पर हार नहीं मानती तभी तो दुनिया में चैन-ओ-अमन कायम है | एक आत्मीय आलेख आभार. भाई ...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया....
    नारी मन को छू जाने वाली कृति....

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. रह जावोगे ढूँढ़ते, श्रेष्ठ समर्पण त्याग |
    नारीवादी भर रहीं, रिश्तों में नव आग |
    रिश्तों में नव आग, राग अब बदल रहा है |
    एकाकी जिंदगी, समंदर आह सहा है |
    पावन माँ का रूप, सदा पूजा के काबिल |
    रहे जहर कुछ घोल, कहे है रविकर जाहिल ||

    जवाब देंहटाएं
  4. नारी के समर्पण का छद्म पूर्ण सम्मान,,,,सुंदर अभिव्यक्ति,

    RECENT POST LINK ...: विजयादशमी,,,

    जवाब देंहटाएं
  5. आज नारी में चेतना आ गयी है .... झूठा सम्मान नहीं बल्कि समानता का अधिकार चाहिए ... कब तक भ्रम में जीती रहेगी नारी ... बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. कल 28/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर भाव... कभी आना... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  8. मुखौटे के पीछे छिपे दर्द को स्वर देती सुन्दर रचना.. जो नियति बन जाती है.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत खूब ...नारी मन का चित्रं जब एक पुरुष करता है तो अधिक भला लगता है

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