गम-ए- पुरसिसी का आलम न पूँछिये,
सब आये हँसने मेरे हालात पर !
ये कोई अदालत नहीं है गुनाह-ए- इश्क की,
जो हो रहे हैं सवाल-सवालात पर !
इल्ज़ामों से बेहतर खामोश रहना ठीक,
लगा लिए हैं ताले जज़्बात पर !
ऐ बंदे! किसने दिया है तुमको ये हक,
लगाओ कोई इल्ज़ाम कायनात पर !
वो कफ़न साथ लाये थे, न थी उन्हें कोई;
शक-ओ-शुबा उनके इन्तजामात पर !
गम-ए- पुरसिसी का आलम न पूँछिये,
सब आये हँसने मेरे हालात पर !
सब आये हँसने मेरे हालात पर !
ये कोई अदालत नहीं है गुनाह-ए- इश्क की,
जो हो रहे हैं सवाल-सवालात पर !
इल्ज़ामों से बेहतर खामोश रहना ठीक,
लगा लिए हैं ताले जज़्बात पर !
ऐ बंदे! किसने दिया है तुमको ये हक,
लगाओ कोई इल्ज़ाम कायनात पर !
वो कफ़न साथ लाये थे, न थी उन्हें कोई;
शक-ओ-शुबा उनके इन्तजामात पर !
गम-ए- पुरसिसी का आलम न पूँछिये,
सब आये हँसने मेरे हालात पर !
वाह...
जवाब देंहटाएंलाजवाब गज़ल....
सभी शेर कमाल के है...
अनु
लाजवाब!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल है | बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग में आये और हमसे जुड़ें |
जवाब नहीं मिलता
बहुत सुन्दर ग़ज़ल है अस्थाना जी !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढियां गजल..
जवाब देंहटाएंलाजवाब....
:-)
कल 21/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
सभी शेर बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंगम-ए- पुरसिसी का आलम न पूँछिये,
जवाब देंहटाएंसब आये हँसने मेरे हालात पर !
इल्ज़ामों से बेहतर खामोश रहना ठीक,
लगा लिए हैं ताले जज़्बात पर !
ये कोई अदालत नहीं है गुनाह-ए- इश्क की,
जो हो रहे हैं सवाल-सवालात पर !
सुंदर भाव एक नजर इधर भी... http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com