क्योँ ना सजा लूँ ग़म ए हस्ती अब्तर ,
जो अशआर मे अश्क-ए-गम इजाद हुए हैं !
चश्म-ए-दीदार की जादूगिरी को क्या कहें,
शेख और सूफी भी न इनसे आजाद हुए है !
उजड़े ही हैं चमन यहाँ इश्क-ए-राह पर,
कहाँ - कब घरौंदें घास के आबाद हुए हैं !
क्योँ ना सजा लूँ ग़म ए हस्ती अब्तर ,
जो अशआर मे अश्क-ए-गम इजाद हुए हैं !
जो अशआर मे अश्क-ए-गम इजाद हुए हैं !
रहबर ने गर्दिश-ए- खाकसार बना दिया,
जैसे तूफां के झोकों से दरख्त बर्बाद हुए है !
जैसे तूफां के झोकों से दरख्त बर्बाद हुए है !
हर वक्त जो भी वख्त में मिला वो सब,
गम-ए- फुरकत में मेरे ही इन्दाद हुए हैं !
गम-ए- फुरकत में मेरे ही इन्दाद हुए हैं !
शेख और सूफी भी न इनसे आजाद हुए है !
कहाँ - कब घरौंदें घास के आबाद हुए हैं !
क्योँ ना सजा लूँ ग़म ए हस्ती अब्तर ,
जो अशआर मे अश्क-ए-गम इजाद हुए हैं !
वाह ,,,,लाजबाब, बेहतरीन गजल,,,,बधाई
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST: माँ,,,
खूबसूरत...
जवाब देंहटाएंआज 14-10-12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... हमारे यहाँ सातवाँ कब आएगा ? इतना मजबूत सिलेण्डर लीक हुआ तो कैसे ? ..........ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
बहुत सुन्दर गज़ल....
जवाब देंहटाएंअनु
Achchhi ghazlen kah rhe hain aap meri mubaarakbaad...Hareram Sameep
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