हृदय,
जो भरा था
कभी भावों से,
दया, प्रेम और
करुणा से;
रिक्त हो गया
छा गयी नीरसता
द्वेष, घृणा और
हिंसा ने
कर लिया अधिकार!
विषाक्त
कर दिया
पूरे शरीर को;
नस-नस में
दौड़ रही हैं
द्वेष और
हिंसा की अतृप्त
भावनाएं!!
न जाने
कब मिलेगा
वह अमृत
मानव के इस
रुग्ण हृदय को,
जो पुनः
हो उठे जीवंत
और सार्थक
कर दे
मानव जीवन को !
जो भरा था
कभी भावों से,
दया, प्रेम और
करुणा से;
रिक्त हो गया
छा गयी नीरसता
द्वेष, घृणा और
हिंसा ने
कर लिया अधिकार!
विषाक्त
कर दिया
पूरे शरीर को;
नस-नस में
दौड़ रही हैं
द्वेष और
हिंसा की अतृप्त
भावनाएं!!
न जाने
कब मिलेगा
वह अमृत
मानव के इस
रुग्ण हृदय को,
जो पुनः
हो उठे जीवंत
और सार्थक
कर दे
मानव जीवन को !
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