आज मेरा भारत
अपनी ही दुर्दशा
पर रो रहा है ,
हर तरफ अत्याचार,
फ़ैल रहा भृष्टाचार,
रो रही मानवता ,
हो रहा दुराचार
देख कर निज सुतो का
निज पर व्यभिचार !
विवश हो रहा है !
अपनी ही दुर्दशा
पर रो रहा है !
हाय मानव की पिपासा,
जागृत क्षुधा
अभिशिप्त अभिलाषा ,
यह कलुषित समाज,
हो रहा कैसा द्वंद्व आज !
सुभाष ,भगत आजाद,
कैसे होगा सहन यह
निज बांधवों का अवसाद !
अमित अस्तित्व क्यों
आज खो रहा है ?
आज मेरा भारत
अपनी ही दुर्दशा
पर रो रहा है !
गीता का दर्शन ;
पन्ना का त्याग,
हल्दी घाटी का मैदान,
जलियाँ वाला बाग़ !
राणा की धरती ,
पदमनियों का सुहाग !
आज क्रांति की हर
वो सर्जक आग ,
सब यह व्यर्थ
क्यों हो रहा है?
आज मेरा भारत
अपनी ही दुर्दशा
पर रो रहा है !
भारत के आंसू पहचानती है कवि की लेखनी...
जवाब देंहटाएंपरिदृश्य अवश्य बदलेगा!