ये प्राण बड़े ही
निठुर और नीरस हैं !
समर्पित किया जाय !
कब छोड़ चले जाएँ
इन माटी के मटके
से बिन पर उड़ जाएँ !
कर लो कुछ ऐसा
जो ये क्षुण जीवन
बन सार्थक जाय !
अर्थ निरर्थक है
सब कृतिका में !
मृग मरीचिका के
तृषा जाल से
समय पूर्व बच जाय;
सब रंग बेरंग हैं ,
जीवन दर्शन नहीं
साश्वत और सत्य है
लेकिन जिया जाय !
हर मृत्यु करती
सुप्त को जागृत ,पर
हर समय स्वयं
होता भ्रमित
क्या मेरा भी होगा अंत
इसे भी जान लिया जाय !
निठुर और नीरस हैं !
किस पर इन्हें
समर्पित किया जाय !
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