साँझ के झुरमुट से
झांकता एक
नन्हा पक्षी
जिसे प्रतीक्षा है
अपनी माँ की !
सुबह से गयी थी
जो कुछ दानों की
खोज में !
दिनभर भटकने के बाद
तब कहीं जाकर
अनाज की मंडी में
मिले थे चार दाने
घुने हुए गेंहूं के !
चोंच में दबाये
सोंच रही है ,
इन चार दानों से
तीन जीवों का
छोटा पेट भर पायेगा
या कि रात कटेगी
चाँद को ताकते हुए!
तभी उसे नजर आया
उसका अपना घर और
वह चूजा जिसे छोड़ कर
निकली थी भोजन की
तलाश में !
क्या कहेगी अपनों से
बस दिन भर में मिले
केवल यही चार दाने !
फिर याद आया
उसे मंदिर के कोने में
बैठा हुआ एक अपाहिज
और उसका सूना
कटोरा!
और
कूड़े के ढेर पर पड़ी हुयी
रोटियों के लिए
लड़ते हुए
कुछ लावारिश बच्चे !
तसल्ली देकर
खुद से बोली
कमसे कम मेरा चूजा
लावारिश और
अपाहिज तो
नहीं है
आज एक दाना
ही खाकर
चैन से सो तो सकेगा !
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें