सुबह-सुबह ही
एक घर के सामने,
पुलिस का वहां खड़ा था ;
एक दरोगा दो कनेस्टेबेल
लाश के पंचनामे के
पचड़े में उलझे हुए---
चित्रकार चित्र उतार रहा था,
लाश के हर दिशा से, हर कोण से
मात्र गले के ही
तीन चित्र उतारे गये;
फिर पूंछ ताछ हुयी;-
मृतिका का नाम- कुसुम (जिसे खिलने ही न दिया गया )
उम्र - बीस साल ,
पति का नाम- दयाल;
स्वसुर का नाम- अमीरचंद ,
ब्याह कब हुआ था -एक वर्ष पहले!
तो मामला संगीन है;
अपराध भी तो कम नहीं है;
लाश पोस्त्मर्तम को जायेगी,
कार्यवाही तभी होगी
जब वहां से रिपोर्ट आयेगी ;
शाम को बाप बेटे दोनों -
पहुंचे एस पी के पास ,
मन प्रसन्न, चेहरा उदास;
मंत्री का पत्र साथ था,
एस पी से सीधे
मिलने का पास था!
बात पचास हजार में तय हुयी,
कुछ दिन पश्चात
रिपोर्ट भी आ गयी ,
कुछ ऐसी थी जो
अदालत को भी भा गयी!
यह 'दहेज़ उत्पीडन' की घटना,
न होकर 'आत्महत्या' करार दी गयी ;
एक पत्र पर बहू के हश्ताक्षर जो थे;
उसी की हत्या के साक्ष्य जो थे,
लिखा था-
मेरे पिता ने मुझे बलात
यहाँ ब्याहा था ,
जो की मेरे लिए अनचाहा था ,
मेरा अंतरजातीय प्रेम,
प्रेम न होकर
एक मात्र अभिशाप था!
मेरे उदर में
उस बदनसीब
का पाप था
अब आत्महत्या ही
उसका अंतिम पश्चाताप था!
मामले को कुछ ने समझा
कुछ को समझाया गया
सत्य-असत्य का
रहस्य-रहस्य ही रह गया ;
दहेज़ उत्पीडन को अब
आत्म हत्या ठहराया गया !
एक घर के सामने,
पुलिस का वहां खड़ा था ;
एक दरोगा दो कनेस्टेबेल
लाश के पंचनामे के
पचड़े में उलझे हुए---
चित्रकार चित्र उतार रहा था,
लाश के हर दिशा से, हर कोण से
मात्र गले के ही
तीन चित्र उतारे गये;
फिर पूंछ ताछ हुयी;-
मृतिका का नाम- कुसुम (जिसे खिलने ही न दिया गया )
उम्र - बीस साल ,
पति का नाम- दयाल;
स्वसुर का नाम- अमीरचंद ,
ब्याह कब हुआ था -एक वर्ष पहले!
तो मामला संगीन है;
अपराध भी तो कम नहीं है;
लाश पोस्त्मर्तम को जायेगी,
कार्यवाही तभी होगी
जब वहां से रिपोर्ट आयेगी ;
शाम को बाप बेटे दोनों -
पहुंचे एस पी के पास ,
मन प्रसन्न, चेहरा उदास;
मंत्री का पत्र साथ था,
एस पी से सीधे
मिलने का पास था!
बात पचास हजार में तय हुयी,
कुछ दिन पश्चात
रिपोर्ट भी आ गयी ,
कुछ ऐसी थी जो
अदालत को भी भा गयी!
यह 'दहेज़ उत्पीडन' की घटना,
न होकर 'आत्महत्या' करार दी गयी ;
एक पत्र पर बहू के हश्ताक्षर जो थे;
उसी की हत्या के साक्ष्य जो थे,
लिखा था-
मेरे पिता ने मुझे बलात
यहाँ ब्याहा था ,
जो की मेरे लिए अनचाहा था ,
मेरा अंतरजातीय प्रेम,
प्रेम न होकर
एक मात्र अभिशाप था!
मेरे उदर में
उस बदनसीब
का पाप था
अब आत्महत्या ही
उसका अंतिम पश्चाताप था!
मामले को कुछ ने समझा
कुछ को समझाया गया
सत्य-असत्य का
रहस्य-रहस्य ही रह गया ;
दहेज़ उत्पीडन को अब
आत्म हत्या ठहराया गया !
samaaj ki is sthiti ke liye hum sab jimmevaar hain !
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