तोड़ कर पाषाण
की छाती,
जब निर्झर निकलता है;
हरने को तिमिर
मिटाकर
स्वयं को जब'
दीप जलता है;
झेलकर थपेड़े
तीव्र पवन के
जब तरुवर
फलता है;
तबही उसको
इस जग में
परहित करने का
यश मिलता है!
बुझाने को प्यास
जब निः स्वार्थ
वारिद धरा पर
बरसता है;
करने को जब
प्रमुदित मन
पुष्प सुगंध को
बिखेरता है;
फूंकने को प्राण
नव चेतना के
जब मंद मलय
समीर बहता है;
तबही उसको
इस जग में
परहित करने का
यश मिलता है!
की छाती,
जब निर्झर निकलता है;
हरने को तिमिर
मिटाकर
स्वयं को जब'
दीप जलता है;
झेलकर थपेड़े
तीव्र पवन के
जब तरुवर
फलता है;
तबही उसको
इस जग में
परहित करने का
यश मिलता है!
बुझाने को प्यास
जब निः स्वार्थ
वारिद धरा पर
बरसता है;
करने को जब
प्रमुदित मन
पुष्प सुगंध को
बिखेरता है;
फूंकने को प्राण
नव चेतना के
जब मंद मलय
समीर बहता है;
तबही उसको
इस जग में
परहित करने का
यश मिलता है!
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