कोई भूल जाता है
अपनों को
कोई अपना लेता है
सपनो को ,
किसी को दर्द में
मिलती ख़ुशी,
कोई ढूढ़ रहा
ग़मों में हंसी ,
कोई रो रहा है
अपने ही हाल पे ;
नाच रहा कोई
दूसरे की ताल पे,
सब अपनी ही
कहानी बुने जा रहें ,
अपनी ही दास्ताँ
खुद ही सुने जा रहें !
दस्तूर है इस जहाँ का
किसी का कोई
सहारा नहीं होता;
डूबती कश्ती का और
आती -जाती मौजों का
किनारा नहीं होता !
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