जो थी मेरे हिस्से की ;
जी चुका हूँ ,
खुशियों के झूंठे
मादक प्याले
पी चुका हूँ !
अब बची हैं जो कुछ
मुट्ठी भर सूखी सांसें ;
इनको जीने के लिए,
मरता हूँ हर पल;
कब बीत गया ये क्षणिक
पर लम्बा जीवन!
बीत गया या आने वाला है;
आगत-विगत कल !
अब विवश हूँ!
नहीं ढ़ो पाऊँगा ;
तुम्हारी बोझिल
सांसों की ये धरोहर!
अब समेट लो;
अपनी बाहें फैलाकर;
ये सांसें और जीवन;
जो तुम्हारा है,
कर लो लीन अपने भीतर!!
वाह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना....
अनु