रुनझुन करती पायलिया
शाम ढले तुम आजाओ !
चौंक उठती हैं ये साँसें,
तेरे आने की आहट पाकर !
नाम से ही तेरे चंदा भी
छुप जाता अम्बर में जाकर!
अंधियारे जीवन में तुम
आकर उजाला कर जाओ!
रुनझुन करती पायलिया
शाम ढले तुम आजाओ !
तुम आ गए हो तो रौनक आ गई है गरीबखाने में वगरना कोई कब्रिस्तां में जश्न मनाता है क्या। एक इश्क ही तो है जिसमें लोग लुट जाते हैं, यूं ह...
सुंदर गीत ... या कहे प्रेम गीत ... मेरे भी ब्लॉग पर आये
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