अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
अभी तो
बीते हैं
कुछ ही बरस,
कुछ भी
तो नहीं
हुआ है नीरस/
खुला ही
रहने दो
इस घर का यह दर.....!
अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
हर-
आहट पर,
चौंक उठती,
रह-रह कर
कहता
क्षण
धीरज धर,
भ्रम से
न मन भर ,
कहाँ
टूटी है
सावन की सब्र.....!
अभी-अभी
तो वे गये हैं
आने को कह कर,
अभी तो
ऑंखें ही
पथराई हैं,
कहाँ
अंतिम घड़ी
आयी है ,
अभी
प्रलय की
घटा कहाँ
छाई है,
देखूँगी
मैं अभी
उन्हें नयन भर....!
bahut hi gahri baat.........
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