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जीवन

यह लघु जीवन कितना विशाल!

                          पग-पग पर मिलते चौराहे,
                          हर पथ पर मन जाना चाहे.
                          है जिसको यह जग ठुकराए,
                          भ्रमित पथिक किस पथ  जाए/
खाकर ठोकर हुआ बेहाल !
यह लघु जीवन कितना विशाल!

                                              बनते-मिटते सपने मन के;
                                              हंसते-रोते पल जीवन के,
                                              कितनी पथरीली ये राहें;
                                              स्वागत को फैलाये बाँहें :
              हर पल उलझता माया जाल'
              यह लघु जीवन कितना विशाल!

                             सुलझे जितना उलझे जीवन,
                             हर पल होता है घायल तन;
                             प्रतिक्षण होता विक्षिप्प्त अंतर्मन; 
                             होता रहता  मात्र हृदय वेदन;
कितना निठुर क्रूर काल व्याल,
यह लघु जीवन कितना विशाल!

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