दिनकर की विशाल किरणें,
क्यों कर मलिन हो रहीं हैं?
सृजन की राहें अब क्यों,
विह्वर और कठिन हो रही हैं?
अविरल जीवन की श्रांत सांसें,
क्या क्षुण क्षणों में व्यर्थ हो जायेंगीं?
सृजन की ये नव आशाएं ,
क्या प्रत्यक्ष यथार्थ हो पाएंगीं//
कल्पनाओं की अल्पनायें अब,
क्यों कर धूमिल हो रहीं हैं.....
दिनकर की विशाल किरणें,
क्यों कर मलिन हो रहीं हैं?
सृजन की राहें अब क्यों,
विह्वर और कठिन हो रही हैं?
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