असत्य,
जिसने बदला इतिहास,
जिसके न होने पर होता है
सत्य का परिहास!
असत्य,
न रखते हुए अस्तित्त्व,
करता सत्य को साकार;
सत्य का जब हुआ उपहास,
असत्य से ही मिला प्रभास!
किचित
असत्य नहीं होता यथार्थ!
परन्तु, सत्य के महत्त्व का
आधार है यही असत्य,
हम अब भी सत्य औ
असत्य के महत्त्व के मध्य,
हैं विभ्रमित और विस्मित !
इस पार है असत्य ,
उस पार वह प्रत्यक्ष ,
सत्य !!
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