सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

" ना, ऱी - समाज "



अभियक्त के 
मुकद्दमे की ,
बहस में,
अधिवक्ता महोदय 
बोले अदालत में ,
' योरानर ! - 
इस बेचारे ने तो 
अबला की रक्षा में ,
हाथ बढ़ाया /
और समाज ने 
बिना अर्थ के ही 
इसे बलात्कारी 
बताया/
अब आप ही
 न्याय करें,
क्या, क्यों , कोई?
अबला की 
रक्षा न करे /
यदि ,
यही बलात्कार है ,
तो नारी को 
नग्न करने में 
कौन सी धारा 
लागू होती है ?
जब सौन्दर्य प्रतियोगिता या 
फिल्म के दृश्य में ,
नग्न की जाती है /
जब हृदय और 
उसकी संचेतना 
भग्न की जाती है ,
तब-
"उनपर "
कौन सा 
मुकद्दमा 
चलाया जाता है ,
बस 
आधुनिकता का 
नाम देकर,
समाज का 
चलन बताया जाता है/
(ग्यारह वर्ष पूर्व एक सत्य घटना से आहत हुए हृदय के भाव )
                                            शनिवार, ९-१२-२००० 
                                              सीतापुर उत्तर प्रदेश 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मुझे स्त्री ही रहने दो

मैं नहीं चाहूंगी बनना देवी मुझे नहीं चाहिए आठ हाथ और सिद्धियां आठ।   मुझे स्त्री ही रहने दो , मुझे न जकड़ो संस्कार और मर्यादा की जंजीरों में। मैं भी तो रखती हूँ सीने में एक मन , जो कि तुमसे ज्यादा रखता है संवेदनाएं समेटे हुए भीतर अपने।   आखिर मैं भी तो हूँ आधी आबादी इस पूरी दुनिया की।

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह

बेख्याली

न जाने किस ख्याल से बेख्याली जायेगी; जाते - जाते ये शाम भी खाली जायेगी। गर उनके आने की उम्मीद बची है अब भी, फिर और कुछ दिन  मौत भी टाली जायेगी। कुछ तो मजाज बदलने दो मौसमों का अभी, पुरजोर हसरत भी दिल की निकाली जायेगी। कनारा तो कर लें इस जहाँ से ओ जानेजां, फिर भी ये जुस्तजू हमसे न टाली जायेगी । कि ख्वाहिश है तुमसे उम्र भर की साथ रहने को, दिये न जल पाये तो फिर ये दिवाली  जायेगी।