धूप,
जो हुआ करती थी,
सभी की,
आज हो गयी है
चांदनी चौक का
एक टुकड़ा जमीन/
जिस पर
धन कुबेरों का है
कब्जा ,
व अधिकार,
बनाकर राष्ट्रीय उड्डयन
या ऐतिहासिक स्मारक,
फिर उनमें सशुल्क
प्रवेश की अनुमति
कर देतें हैं तनिक
उपकार/
छीन सकते हो यदि
हमारे हिस्से की धूप,
तो छीन कर दिखाओ,
इन वातानुकूलित
घोंसलों से निकल
दरिद्र भारत के
मैंदानों में आओ /
जहाँ अभी भी
हमारा ही अधिकार
है और रहेगा;
क्योंकि
इसे न छीन पाना
तुम्हारी विवशता है,
और हमारा
अभिशाप!
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