चाहे जितनी तीव्र चलें ये आंधियां;
उखाड़ सकती है तरु और विटप,
नहीं मोड़ सकती राह सृजन की!
चाहे जितने आयें तीव्र बवंडर;
मिटा सकते हैं बलूकाकृतियाँ,
नहीं मिटा सकते भावना अर्जन की !
चाहे कितने ही जोड़ लो तुम
अध्याय इतिहास में प्रलय के,
फैला लो सारी वृत्तियाँ वर्जन की!
चाहे कैसे भी बना लो तुम;
नये-नए तरीके नित विलय के,
नहीं रोक सकते राह सृजन की !!
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.in/