बहुत दिनों के बाद,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है!
फैला था कुहरा
अति घनघोर,
था चतुर्दिश
था चतुर्दिश
शीत लहर का शोर ,
कुहासे के छटने पर ,
सूरज ने ऑंखें खोली है ....
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है!
शिशिर रातों के
हिम पाटों में
शीत से व्याकुल हो,
तप-तप टपकती
जल की बूंदों से
निशा में आकुल हो;
हमसे आज करती
हमसे आज करती
प्रकृति भी यूँ कुछ
ठिठोली है............
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है!
देख कर जलद
उड़ते गगन में
आम्र कुंजों में मग्न हो,
नाच उठे मयूरी !
सितारों जड़ी ओधनी
ओढ़ के धरा पर
आयी हो शाम सिंदूरी !
मानो शृंगारित हो
नव वधू प्रिय मिलन को चली है!
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है!
पौधों पर नव कलियाँ
खिल-खिल कर झूम रही ,
सरसों की अमराई में
तितलियाँ फूलों को चूम रही;
मानो प्रकृति ने आज धरा पर
पीली चूनर डाली है!
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है!
नभ में गूँज रहा
विहगों का कलरव,
खिला हुवा अम्बुज है
ज्यूं सरिता का कुल गौरव ;
निज योवन कि अंगड़ाई में
निस्त्रा भी मचली है!
बहुत दिनों के बाद ,
आज मेरे भी आंगन में
धूप खिली है!
आँगन में उतरती धूप का बेहद सुन्दर शब्दों से स्वागत किया है आपने ..सादर
जवाब देंहटाएंबस धूप यूं ही खिली रहे ... बहुत प्यारी रचना
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जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूबसूरत अहसास हर लफ्ज़ में आपने भावों की बहुत गहरी अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है... बधाई आपको... सादर वन्दे...superb .