उल्फत -ए-रुसवाई में जो मिली जुदाई ,
तन्हाई में जीने की आदत सी हो गयी ...............!
गुजरे हैं जिन्दगी के उस मुकाम से ,
हर गम पीने की आदत सी हो गयी ..................!
अब तो बस दिए हुए उन जख्मों को ,
यादों में सीने की आदत सी हो गयी .................!
खुद मेरी मंजिल मालूम नहीं मुझे ,
भीड़ में खो जाने की आदत सी हो गयी ............!
ये ज़िंदगी तो अब मुकद्दर बन गयी ,
सजा -ए - मौत पाने की आदत सी हो गयी . .......!
सैयाद तेरा दाम कितना ही नाजुक हो ,
इस में फडफड़ाने की आदत सी हो गयी ...........!
उल्फत -ए-रुसवाई में जो मिली जुदाई ,
तन्हाई में जीने की आदत सी हो गयी ................!
तन्हाई में जीने की आदत सी हो गयी ................!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
प्रशंसनीय रचना - बधाई
जवाब देंहटाएंRecent Post…..नकाब