थक चुकी है
अब धरती;
जीवन का भार ढोते -ढोते!
बिखर जाना चाहती है
टूट कर, होना चाहती है विलीन
आकाश गंगा में;
पुनः अपने अस्तित्व के लिए!
बस प्रतीक्षा है
इसको उस "asteroid" का
जो अनंत से आ रहा है
लिए एक विनाश
और पुनर्निर्माण के
प्रारम्भ का नया सोपान!
ऐसे ही कितने
होते रहते है विनाश;
और सृजन की
प्रक्रिया चलती रहती है
अनवरत!
और यह "black hole"
बनता रहता है,
अनंत आकाश गंगाएं !
सृजन और नाश ,,,जन्म और मृत्यु की तरह सत्य है
जवाब देंहटाएंउम्दा पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएंभाषा सरल,सहज यह कविता,
भावाव्यक्ति है अति सुन्दर।
बहुत बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएं:-)
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति,,
जवाब देंहटाएंप्रकृति में सृजन और बिनाश प्रक्रिया निरंतर चलाती रहती है ,,,,,
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